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देवता: पवमानः सोमः ऋषि: अवत्सारः काश्यपः छन्द: गायत्री स्वर: षड्जः काण्ड:

इ꣢न्दो꣣ य꣢था꣣ त꣢व꣣ स्त꣢वो꣣ य꣡था꣢ ते जा꣣त꣡मन्ध꣢꣯सः । नि꣢ ब꣣र्हि꣡षि꣢ प्रि꣣ये꣡ स꣢दः ॥९७६॥

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स्वर-रहित-मन्त्र

इन्दो यथा तव स्तवो यथा ते जातमन्धसः । नि बर्हिषि प्रिये सदः ॥९७६॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इ꣡न्दो꣢꣯ । य꣡था꣢꣯ । त꣡व꣢꣯ । स्त꣡वः꣢꣯ । य꣡था꣢꣯ । ते꣣ । जात꣢म् । अ꣡न्ध꣢꣯सः । नि । ब꣣र्हि꣡षि꣢ । प्रि꣣ये꣢ । स꣣दः ॥९७६॥

सामवेद » - उत्तरार्चिकः » मन्त्र संख्या - 976 | (कौथोम) 3 » 2 » 5 » 2 | (रानायाणीय) 6 » 2 » 2 » 2


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हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अगले मन्त्र में परमात्मा की स्तुति के साथ उससे प्रार्थना की गयी है।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे (इन्दो) चन्द्रमा के समान आह्लादक प्रेममय प्रभो ! (यथा) जैसी महान् (तव) आपकी (स्तवः) स्तुति एवं महिमा है और (यथा) जितना महान् (ते) आपके (अन्धसः) आनन्दरस का (जातम्) समूह है, वैसे ही महान् आप हमारे (प्रिये बर्हिषि) प्रिय हृदयासन पर (नि सदः) बैठिए ॥२॥

भावार्थभाषाः -

अपनी महिमा के अनुरूप महान् रसमय जगदीश्वर हमें प्राप्त होकर आनन्दरस से सराबोर कर दे ॥२॥

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संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अथ परमात्मनः स्तुतिपूर्वकं तं प्रार्थयते।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे (इन्दो) चन्द्रवदाह्लादक प्रेममय प्रभो ! (यथा) यादृशो महान् (तव) त्वदीयः (स्तवः) स्तुतिः महिमा च वर्तते (यथा) यादृङ् महच्च (ते) तव (अन्धसः) आनन्दरसस्य (जातम्) समूहो (विद्यते), तथा तादृगेव (नि सदः) निषीद ॥२॥

भावार्थभाषाः -

स्वमहिमानुरूपं महान् रसमयो जगदीश्वरोऽस्मान् प्राप्यानन्दरसार्द्रान् कुर्यात् ॥२॥

टिप्पणी: १. ऋ० ९।५५।२।